
उस्ताद मोहमद खान ने फिर अपने माथे पे हथेली रख झांक कर ऑडिटोरियम में बैठे हुए श्रोता गण की संख्या का अंदाजा लगाया । बेचारा असलम खान ! बोर होते होते जम्भाई के अलावा और क्या करता ? सज धज के एक जवान चुलबुली सी लड़की स्टेज पे तानपुरा बजाने हाजिर हुई। ऐसे में मोहन भाई जैसे अनेको श्रोताओं को स्टेज की और घूर के नज़र थमाए रखने का बहाना मिल गया।
मोहमद खान ने अपनी उँगलियों को सा से मन्द्र सप्तक के ध तक गज से नाद छेड़ कर यमन राग का आरम्भ किया। असलम खान ने मोहमद खान की ये अदा पे आफरीन होने का भाव दिखा कर अपना सर हिलाया । आगे वाली कतार में मोहन भाई की बगल में बैठे हुए गुणीजन के मुख से ‘ क्या बात है ‘ के उद्द्गार निकल पड़े।
मोहन भाई, जिन की समझ से ये बिलकुल बाहर था उन्होंने अपना मोबाईल फ़ोन झट से पेण्ट की जेब से निकाला। आखिर अपनी बीबी का फोन था न ? “हाँ जी कहो में सुन रहा हूँ।—— हां हां यहाँ सब ठीक ठाक है। — क्या कहा ? —–हां भाई हां, मेरी फ़िक्र ना करें। —- बबलू अब ठीक है ? –दस्त, उलटी वगैरा बंध हो गए ? नहीं में तो ये संगीत सम्मलेन में आया हूँ — कोई बात नहीं — महफ़िल अब शुरू नहीं हुई है —कलाकार अब भी अपना साज ट्यून कर रहे है। —–“
बगल में बैठे गुणीजन ने मोहन भाई के कंधे पर हाथ रख कर हलकी सी चेतावनी दी , “आता गप बस “
मोहन भाई सहम उठे
ऐसे तो ऑडिटोरियम में कई मोबाईल फ़ोन की जुगल बंदी चल रही थी लेकिन उस्ताद अपनी कला पेश करने में लगे हुए थे और तबला नवाज़ असलम खान ने हमेशा की तरह उबाऊ कवायत शुरू कर दी। उनको खुशहाल है ये नाटक करना पड़ता है न ? जब तलक मुख्य कलाकार अपना आलाप वगैरा समाप्त न करें तब तक कभी अपने हाथो को बदन से सटा कर मुस्कुरा देना, कभी तबले पर रखी हुई गद्दियाँ ठीक है की नहीं वो देख लेना, कभी स्टेज की साइड में ऑर्गेनाइजर्स क्या कर रहें हैं वो देखने की कोशिश करना। बड़ी बोरिंग चेष्टाएँ है ये सब। बुज़ुर्ग लोग कह गए की वहाँ बैठे रहनेसे श्रोता गण के साथ ताल मेल बनता है। चलो सच ही होगा।
अब तनिक देखें हमारे माइक प्रेमी रमेश राठोड का क्या हाल है।
स्टेज की साइड में एक छोटे स्टूल पे बैठ के मसाले दार, बेहद मीठी चाय पीना तो बनता है न ? जहां से इर्द गिर्द क्या गतिविधियां हो रही है, भैया ? ज्यादातर चेरमैन, वाइस चेरमैन, सेक्रेटरी, ट्रेजरर सब अपने अपने मोबाईल में वॉट्सऐप पे लगे थे – लेटेस्ट मेसेज आ रहे थे – आदरणीय हंसराज भाई की तबियत अब कैसी है वगैरा। इतना बड़ा हादसा हो गया तो अपने लोग फ़िक्र तो करेंगे।
हमारे मुख्य कलाकार अब फॉर्म में आ गए थे और सप्तक के पंचम तक पहुँच गए थे। श्रोता गण को उनको देख के लगता होगा की उनकी आँखे बंध है लेकिन, आंख के कोने से असलम खान क्या कर रहे थे वो भी देखना पड़ता हैं । असलम खान का भी क्या कहना ? बड़े कलाकार के साथ बजाने का जो मौक़ा मिला था वो निभाने की फ़िक्र मुँह पे दिखनी चाहिए। बड़े हुशियार असलम खान, जो बार बार अपना सर हिला कर मोहमद खान के वादन की सराहना करते रहे।
वहां ऑर्गेनाइजर्स अपनी समस्या को सुलझाने में लगे थे। कलाकार के लिए छोटे शहर की होटल में रूम कन्फर्म हुई की नहीं ? कल प्रातः काल में कलाकारों को रेलवे स्टेशन पर छोड़ ने कौन बन्दा जाएगा ? किसी कारण वश आभार विधि कौन करेगा वो तय नहीं हो पा रहा था। वाइस चेरमेन को तैयार तो किया था की क्या बोलना – जैसे ” हम आभारी है आदरणीय हंसराज भाई के जिन्होंने अपना कीमती वक्त निकाल कर यहाँ आ कर हमारा हौसला बढ़ाया; दोनों कलाकारों का; तानपुरा पे उँगलियों से अपनी कमाल दिखाने वाली हमारी सबकी लाड़ली और विधायक की बेटी का; म्युज़िक सिस्टम वाले भरत भाई का; ऑडिटोरियम के मालिक श्री पेस्तनजी बावा का; गरमा गर्म कौचौड़ी आयोजन कर समारम्भ को चार चाँद लगाने वाले हमारे सूरज मल जी का और आप सब श्रोता गण का जिनके कॉपरेशन के बिना ———–“
अब हुआ ये की रियाज़ के वक्त ग्रीन रूम में दोनों कलाकार ने जो अगणित चाय के कप अपनी सिस्टम में ढाल दिए थे वो अपना कमाल दिखाने लगा। इधर मोहमद खान तो सारंगी वादन में इतने व्यस्त थे की उनको कुछ नहीं हो रहा था पर असलम भाई की स्थिति नाजुक थी। वो करें भी क्या ? प्रसाधन कक्ष बाहर और ये अंदर स्टेज पे ! उनका जबरदस्ती बैठे रहना आवश्यक था और अंदर प्रेशर बढ़ता जा रहा था। एक मौके की तलाश में असलम खान। मोहमद खान बड़ी मुद्दत के बाद तार सप्तक में प्रवेश कर चुके थे । श्रोता गण में कुछ गिने चुने गुणीजन लोग आनंद विभोर होते गए और असलम भाई ? लाख कोशिशों के बावजूद चैन नहीं था उनको।
वहां ऑडिटोरियम में : मोहन भाई की हालत कुछ कुछ असलम खान जैसी। जिग्नेशभाई आलाप में बहुत समझ है ऐसा दावा करते करते थक गए – अलबत्ता बारी बारी से अपना मोबाईल फोन पे नज़र मारते रहे – शायद कोई इम्पोर्टेन्ट बिज़नेस मेसेज आ जाय। आखिर वाली रो में बैठे साधारण जन समूह को को असाधारण लाइसेंस था – वो अँधेरे में पीछे के गेट से बहुत आराम से पलायन हो सकते थ। और फिर वापस आ के मस्ती कर सकते थे।
आखिर वो समय आ ही गया – आलाप समाप्त। श्रोता गण में से कई लोगों ने आलाप रुपी कष्ट से मुक्ति का तालिआं बजाकर स्वागत किया।मोहमद खान की मुखाकृति भावुक। असलम खान ने सर हिला कर ‘बेमिसाल’ की मोहर लगा दी लेकिन उनका जिस्मी आलाप और उछलने की चेष्टा में। वीरता पूर्ण हंसी कहाँ तक बरकरार रखें ? कोई मौका मिल जाय कुछ पल के लिए बाहर दौड़ लगाने का !
भला रमेश भाई ये मौक़ा छोड़ते? उनका प्रिय माइक उनको बुला रहा था। स्टेज से गुजरते आ गए वो, कलाकार की और एक सराहनीय नज़र और माइक पकड़ लिया। “क्या बात है खान साहेब, परम आनंद की अनुभूति करा दी हमें। (यहां मौक़ा देखते असलम ने उठके दौड़ लगाई प्रसाधन कक्ष की ऒर ), बस आपकी अनुमति से एक ही जरूरी घोषणा करना चाहता हूँ।
माननीय श्रोता गण, खान साहेब को बहुत बहुत शुक्रिया कहते हुए में निवेदन करना चाहता हूँ की आप सभी अपनी अपनी सीट पर बैठे रहे क्योंकि आप जिसका बेसबरी से इंतजार कर रहे है वो कचौड़ियां अभी रेडी नहीं है। प्रोग्राम की समाप्ति होने पर आप सभी लोगों को कचौड़ियों का रसास्वाद जरूर हो जाएगा । थेंक यु फॉर ओर कॉपरेशन, थेंक यु, थेंक यु, थेंक यु ”
अब स्वागत करने की बारी है तबला नवाज़ असलम खान की — लेकिन————— वो नज़र नहीं आये ! — वो बस आते ही होंगे। “

असलम खान की वापसी स्टेज पर उसी समय ; रमेश राठोड के इशारे पर श्रोता गण ने तालियां बजा कर स्वागत किया। असलम खान सब का अभिवादन करते अपनी बैठक पे बिराजमान।
अब फिर से साज मिलाने का दौर शुरू हुआ। इस बार मोहनभाई ने अपनी उलझन को सुलझानेकी कशिश नहीं की। बगल में बैठे हुए गुणीजन का खौफ जो था।
हमारे रमेश भाई ने कॉर्डलेस माइक से स्टेज की साइड से भी घोषणा की ” सबसे बिनती है की जब कलाकार सुर मिला रहे है तो शांति बनाये रखे। थेंक यु फॉर योर कॉपरेशन, थेंक यु, थेंक यु, थेंक यु। “
सुर मिलाते मोहमद खान की तीखी नज़र असलम पर पड़ी, जैसे कह रही थी उन्हें “बेटा तू आज देख लेना, जरा संभलके । नानी याद आ जायेगी आज “
असलम खान ने एक विरक्त भावसे से स्मित किया और अपने तबले पर एक जोर दार हाथ की थपाट लगा कर सुर मिला लिया।
तबले के संगत में संगीत बहने लगा तो लोगो को भी कुछ अच्छा सा लगा। परम्परा अनुसार असलम खान ने तबले पर आवर्तन बजाने शुरू किये , लेकिन जब एक के बाद पांच आवर्तन तक बात पहुंची तो मोहमद खान को अपना मुखड़ा बजाते रहना पड़। पब्लिक खुश – तालियां बहुत देर तक बजती रही लेकिन मोहमद खान ने मुंह बनाया । ‘असलम को चेतावनी देने के बावजूद उसको अकल नहीं आयी’
प्रोग्राम के चलते कई ऐसे पड़ाव आये जब दोनों कलाकार ने मिलके अपने रियाज़ किये हुए तानें सम पे लाकर कुछ देर अटका दि। गुणीजन ज़ूम उठे लेकिन हमारे मोहन भाई हर बार ये समझे की बस अब समाप्त हो गया। वो इतने बोर हो चुके थे की बीचमे उठें या ना उठें ये उलझन बर्दास्त करना बड़ा मुश्किल बन रहा था। दोनों कलाकार अपनी बेरूखी को भूला कर बजाने में व्यस्त थे जबकि तान पूरा बजाने वाली लड़की इतनी सज धज के आयी थी की स्टेज की तेज लाइट से पसीने से परेशान हो गयी ।
यहाँ साज बज रहा था वहाँ ऑडिटोरियम में लोगो के मोबाइल बजना निरंतर चालु था।
दोनों कलाकारों ने एक लम्बी सी तिहाई ले कर प्रोग्राम समाप्त किय। श्रोता गण ने खड़े हो कर भाव विभोर कलाकारों का अभिवादन किय।
जिग्नेश भाई ने पीछे की रो में बैठी उनकी पत्नी को आवाज दे कर बुलाया लेकिन मोहन भाई के पास इतना समय कहाँ? उठ कर वो दौड़ पड़े साइड की एग्जिट गेट की ऒर, अपनी मंज़िल की ऒर। बगल में बिराजमान गुणीजन एक और उलझन में फंसे थे – कचौड़ी खाने बाहर जाना चाहते थे लेकिन इंटरवल के बाद उनका स्थान कोई और छीन ले तो? तब उनकी पत्नी एक फरिश्ता बन कर बोली “ये लीजिये, में घर से कांदे पोहे बनाकर लाई हूँ ” पत्नी ने हाथ में एक प्लास्टिक का चमच थमा दिया वो लेते साहब कृतग्य हो गए। ईश्वर करे सबको ऐसी पत्नी मिले।
बाहर, कचौड़ी के काउंटर पर हाथापाई हो रही थी। मोहन भाई ने चालाकी से लाइन में अपना पहला स्थान ले लिया था लेकिन पीछे से धक्का इतना जबरदस्त लगा की कचौड़ी की चटनी कुर्ते पे छलक उठी। उसी वक्त न जाने कहाँ से रमेश भाई टपक पड़े ” अरे मोहन भाई प्रोग्राम में मज़े तो आयी न?” ये पूछते रमेश भाई फिसले और मोहनभाई को भी गिराते चले। सब सत्यानाश।
“थेंक यु , रमेशभाई प्रोग्राम बहुत अच्छा था लेकिन घर से मेसेज आया है की कोई इम्पोर्टेन्ट गेस्ट आएं है तो घर जाना पडेगा ”
“कोई बात नहीं, मोहन भाई, आते रहना अब हमारे प्रोग्राम में। “
“हाँ बिलकुल” – बता कर मोहनभाई ऑडिटोरियम से बाहर !
अब बेचारे कलाकारों को इंटरवल के बाद मोहनभाई की प्रेरणा बिन बजाना पडेगा।
भागो मोहन प्यारे , भागो—
So pleasant and and fact prastuti…thanks…dear Ranljen bhai..
Thanks, Harishbhai. Your encouragement keeps me going