चिंगारी कोई भड़के ..  जब अपने ही हमें पीड़ा दें

२७ अप्रैल को मैं महफ़िल  के सिलसिले कोच्ची, केरल  पहुंचा तो मेरे यजमान  शिष्य  उल्लास जी ने मेरे हाथ में उनका नया प्रथम तरंग वाद्य थमा दिया, ‘ गुरूजी लीजिये, इनका तनिक ट्यूनिंग कर दीजिये’ 

उन्हें लगा की क्यों न गुरूजी का इतना तो फायदा ले लूँ ताकि मैं भी उनकी तरह बजा सकूँ! लो कर लो बात! 

दो मिनट पहले जनम लेने वाला बच्चा भी माँ को परेशां करने में कोई कमी नहीं छोड़ता. मैंने उसे हाथ में लिया, छेड़ा और बहुत कोशिश की पर ये  बच्चा मेरी एक सुनने वाला नहीं था आज. 

अचानक, वाद्य पैर से नीचे  फिसला  और पैर की उंगली पे जा टकराया. मैं पीड़ा से चीख उठा. और कोई होता तो ? पर ये तो अपना ही था. क्या करें ?

मैं उसे हर दिन बजाता  हूँ तो एक न एक दिन वो मेरी बैंड बजा देगा! सीधी सी बात है!

सच कहा है, 

‘चिंगारी कोई भड़के,  तो सावन उसे बुझाये

सावन जो अगन लगाये,  उसे कौन बुझाये,

बजाते रहो….


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