नीरव संवादिता – मेरे ये सुर और तेरे ये गीत

रंजू को सातवे निर्वाण दिन पर अंजलि जुलाई ११, २०२३

जनवरी २३, २०१६ की वो शाम
Harmony हार्मनी किसे कहते हैं ? मंच पर ‘रसिक बलमा’ के सुर बहाता हुआ मैं और कुछ दूरी बनाये खड़ी मुझे बिना पलक गिराए देखती वो!; अगल बगल में क्या हो रहा है उसे बिल्कुल अनजान, ‘फिल्म चोरी चोरी का ये गीत शुद्ध कल्याण पे आधारित हो या न हो! वो तो बस अपनी मस्ती में मंद मंद मुस्काती गा रही थी, मेरा साथ निभा रही थी, फिर वो विडिओ केमेरा भले उसके चेहरे पर केंद्रित हो या बगल वाले दाढ़ी वाले सज्जन उसे सराह रहें हैं, वो तो एक अलौकिक दुनिया में विहार कर रही थी.जैसे केवल सुर ही उसे स्पर्श करता हो, और कुछ नहीं.
गीत के अंतिम चरणों के पश्चात,एक अति जटिल सुरो को गाती है और वो सज्जन ताज्जुब हो कर सराहते हैं, तो कुछ शर्मा के, मुस्कुराते हुए अपने आप को संभालती है. चेहरे पर ओर दृश्यमान मुस्कराहट, अपनी दुनिया में लौट कर मस्त हो जाती है. जैसे घनघोर रात्रि में पारिजात के फूल खील उठतें है वैसे.
चेहरा बोल उठता है, ‘ बस मुझे इस पल को जीने दो, झूमने दो मुझे, शायद ये पल फिर ना आये; दुनिया मुझे भले देखती रहे तो मुझे कोई परवाह नहीं.

…और छह महिनोमें में वो उड़ चली, कहीं दूर , सप्तरंगी इंद्रधनुष की उस पार. अब वो मेरे साँसों , मेरे सुरों में विद्यमान है. मुझे ललकारती है, सुरों को इंद्रधनुष के उस पार लहराने को. एक दिन मैं भी पहुँच जाऊँगा उस पार, और विलीन हो जाऊँगा उसेक संग. संवादिता इसीको तो कहतें हैं ना?

राजेन – जुलाई ११, २०२३


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