
आज कुछ लिखने की ज़िद ना करो
वैसे ही लोग परेशां है, ज़िद ना करो
बार बार एक ही इमोजीसे प्रतिक्रिया
डाल के थक गयीं हैं उनकी उंगलियां
प्रसिद्द साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने कहा है, “मैं एक मज़दूर हूँ, जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।”
क्षमा याचना सह मैं कहूंगा की, ‘ जिस दिन कुछ लिख ना लुं, उस दिन रोटी खा तो लेता हूँ लेकिन हज़म नहीं होती.
जैसे मेरा संगीत वैसा मेरा लिखना. कुछ संगठित विचार आया तो लिखना जरूरी. संगीत में अगर कोई नयी तर्ज या तान मन में आया तो उसे बजा कर ही तसल्ली मिलती है. एक संवेदना को व्यक्त करना अनिवार्य जो जाता है. फिर कोई उसे पढ़ें/ सुने या नहीं – व्यक्त करना आवश्यक
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Yes, artists want detailed response …but these emojis are so damned convenient!!!!
Ashvin, I just posted a new blog today, you will find my thoughts on this